जागृत भारत | नई दिल्ली(New Delhi): भारतीय रुपये ने शुक्रवार को इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की, जब यह अंतरबैंक बाजार में डॉलर के मुकाबले लुढ़ककर 89.34 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। डॉलर की अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ने, फेडरल रिजर्व द्वारा दर कटौती की उम्मीद कम होने, और India–US ट्रेड डील में लगातार रुकावट के चलते भारतीय मुद्रा पर जबरदस्त दबाव दिखाई दिया। रुपया पहले भी कई बार 88.80 के करीब जाकर संभल चुका था, लेकिन इस बार हालात इतने विपरीत थे कि यह सीधे ऐतिहासिक गिरावट की ओर बढ़ गया।
ट्रेड डील में देरी के साए में बाज़ार में घबराहट
भारत और अमेरिका के बीच नया ट्रेड एग्रीमेंट लंबे समय से चर्चा में है, लेकिन इसे लेकर जारी अनिश्चितता ने विदेशी बाजारों में जोखिम उठाने की क्षमता को कम कर दिया है। हालांकि भारत ने कुछ सप्ताह पहले संकेत दिया था कि समझौता “करीब” है, लेकिन व्यवहारिक प्रगति न होने से मार्केट सेंटिमेंट लगातार कमजोर होता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक भारत और US के बीच टैरिफ, मार्केट एक्सेस और निवेश संबंधी मुद्दों पर स्पष्ट समाधान नहीं आता, विदेशी निवेशक सतर्क रुख अपनाए रहेंगे।
फेडरल रिजर्व की टोन सख्त, वैश्विक बाजार में डॉलर की आक्रामक मजबूती
रुपये की गिरावट की सबसे बड़ी वजहों में से एक है—अमेरिकी डॉलर का लगातार मजबूत होना। फेडरल रिजर्व ने हाल के संकेतों में स्पष्ट किया है कि दरें जल्दी नहीं घटेंगी, जिससे डॉलर इंडेक्स कई सप्ताह से ऊंचाई पर बना हुआ है। डॉलर मजबूत होने से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी स्वाभाविक रूप से कमजोर होती है, और भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
16.5 बिलियन डॉलर की FII बिकवाली—रुपये पर भारी दबाव
इस साल विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी मार्केट से पहले ही $16.5 बिलियन निकाल चुके हैं। इतनी भारी बिकवाली के कारण रुपया एशिया की सबसे कमजोर मुद्राओं में शामिल हो गया है। ट्रेडर्स के अनुसार, जहां पहले RBI ने 88.80 स्तर पर सक्रिय दखल देकर रुपये को सहारा दिया था, इस बार केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप काफी कम दिखाई दिया। 88.80 टूटते ही वॉल्यूम अचानक बढ़ गया और रुपया तेज़ी से 89.34 तक गिर गया।
इंपोर्ट महंगा होने का खतरा—महंगाई पर भी पड़ेगा असर
रुपये की इस गिरावट का सीधा असर आम लोगों की जेब पर भी पड़ सकता है।
कच्चा तेल महंगा हो सकता है
इलेक्ट्रॉनिक सामान पर लागत बढ़ सकती है
विदेश से आने वाले कच्चे माल की कीमतें बढ़ेंगी
कंपनियां कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर हो सकती हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रुपया 89.50 या 90 के करीब पहुंचता है, तो महंगाई में अतिरिक्त उछाल देखने को मिल सकता है।
भारत–अमेरिका ट्रेड समीकरण बदल रहे हैं
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, US–China ट्रेड रिलेशन में सुधार भारत के पक्ष में रहे प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को कम कर रहा है।
ऐसे में India–US डील में देरी भारत के लिए और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह ट्रेड डील जल्द फाइनल नहीं हुई, तो:
निर्यातकों का दबाव बढ़ेगा
विदेशी निवेश और कमजोर होगा
रुपया और नीचे जा सकता है
वर्तमान परिदृश्य में बाज़ार की नजरें सरकार और RBI के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।
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