जागृत भारत | लखनऊ(Lucknow) : राजनीति और समाज में जातिगत पहचान के बढ़ते इस्तेमाल पर लगाम लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जातीय रैलियों पर रोक लगाने से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में राज्य सरकार ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसने न केवल जातीय रैलियों को रोकने के लिए आदेश जारी किया है, बल्कि आपराधिक मामलों (FIR) में किसी भी व्यक्ति की जाति लिखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह फैसला सामाजिक समरसता बनाए रखने और जाति आधारित राजनीति को हतोत्साहित करने की दिशा में एक सख्त पहल मानी जा रही है।
हाईकोर्ट में दाखिल हुआ केंद्र और राज्य सरकार का जवाब
- जवाब दाखिल: हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में जातीय रैलियों पर रोक लगाने के मामले में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ने अपना-अपना जवाब दाखिल कर दिया है।
- राज्य सरकार का दावा: राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने जातीय रैलियों पर रोक लगाने के साथ-साथ पुलिस को यह आदेश भी जारी किया है कि आपराधिक मामलों (FIR) में लोगों की जाति का उल्लेख न किया जाए।
- सर्कुलर जारी: याची अधिवक्ता ने खंडपीठ को यह जानकारी दी कि राज्य सरकार के जवाब के बाद, पुलिस महानिदेशक (DGP) ने भी इस संबंध में एक सर्कुलर जारी कर दिया है।
- याचिकाकर्ता: यह आदेश स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका (PIL) पर न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने दिया है।
- अगली सुनवाई: कोर्ट ने केंद्र सरकार के जवाब पर याची को प्रतिउत्तर दाखिल करने का समय देते हुए, मामले की अगली सुनवाई की तारीख 17 नवंबर को तय की है।
कोर्ट ने पहले भी मांगा था जवाब
- पिछला निर्देश: इस मामले में कोर्ट ने पहले केंद्र और राज्य सरकार के अलावा केंद्रीय निर्वाचन आयोग (ECI) और चार प्रमुख राजनीतिक दलों (कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा) से भी जवाब मांगा था।
- कोर्ट का सवाल: खंडपीठ ने दोनों सरकारों से पूछा था कि जातीय रैलियों को रोकने के लिए वे क्या उपाय कर रही हैं।
- पिछली सुनवाई का विवाद: पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया था कि जातीय रैलियां रोकने का आदेश 21 सितंबर को ही जारी कर दिया गया है। इस पर कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया था कि अगर आदेश जारी हो गया था तो संबंधित अधिकारी ने पहले हलफनामा क्यों नहीं पेश किया।
- सख्त चेतावनी: कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए केवल 3 दिन का समय दिया था और चेतावनी दी थी कि ऐसा न करने पर प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को स्पष्टीकरण देने के लिए पेश होना होगा।
2013 में दाखिल हुई थी याचिका
- याचिका का समय: याचिकाकर्ता मोतीलाल यादव ने यह जनहित याचिका वर्ष 2013 में दायर की थी।
- याची का तर्क: उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल अंधाधुंध तरीके से ब्राह्मण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि नाम देकर जातीय रैलियाँ कर रहे हैं।
- रोक का आदेश: इस याचिका पर सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने 11 जुलाई 2013 को पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर हो रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल रोक लगा दी थी।
- सामाजिक प्रभाव: याची का तर्क था कि ये जातीय रैलियां सामाजिक एकता और समरसता को नुकसान पहुंचाती हैं और समाज में ‘जहर घोलने’ का काम कर रही हैं, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
- तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: यह याचिका 2013 में तब दाखिल की गई थी, जब आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बसपा ने करीब 40 जिलों में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन आयोजित किए थे, और सपा ने भी ऐसे ही जाति व समुदाय आधारित सम्मेलन किए थे। 



























































































































































































































































































































































































































