जागृत भारत अध्यात्म : हिंदू धर्म में पितृपक्ष को अत्यंत पवित्र और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। यह समय विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की समृद्धि के लिए समर्पित होता है। हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलने वाला यह लगभग पंद्रह दिवसीय काल श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस अवधि में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मों के माध्यम से लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस समय पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों से तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। यदि उन्हें श्रद्धा और सम्मान न मिले, तो वे नाराज़ हो सकते हैं, जिससे जीवन में बाधाएं और समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
क्या है पितृ दोष?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब पूर्वजों की आत्मा को संतोष नहीं मिलता या उनके नाम पर आवश्यक कर्म नहीं किए जाते, तो इसे पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में कष्ट, संतान सुख में बाधा, धन की कमी और पारिवारिक समस्याओं का कारण बन सकता है। पितृपक्ष का समय इस दोष को दूर करने का श्रेष्ठ अवसर माना गया है, क्योंकि इस दौरान पूर्वजों को प्रसन्न करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
पितृपक्ष में क्या न करें?
पितृपक्ष में कुछ विशेष नियमों का पालन आवश्यक होता है। ऐसा न करने पर इसका विपरीत प्रभाव जीवन में दिखाई दे सकता है। जानिए इस अवधि में किन कार्यों से बचना चाहिए:
🔴 शुभ कार्यों से परहेज़ करें:
विवाह, सगाई, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य इस समय वर्जित माना जाता है।
🔴 खरीदारी से बचें:
नए कपड़े, जूते-चप्पल, सोना-चांदी या अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदना अशुभ माना जाता है।
🔴 तामसिक भोजन न करें:
मांस, मछली, अंडा, प्याज, लहसुन जैसे भारी और तामसिक भोजन का त्याग करें।
🔴 क्रोध और अपमानजनक व्यवहार से बचें:
बड़ों का सम्मान करें और घर-परिवार में प्रेमपूर्वक व्यवहार रखें। अपशब्द और विवादों से बचें।
🔴 ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें:
पवित्रता और साधना में लगे रहना इस समय विशेष फलदायक होता है।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए करें यह मंत्र जाप
पितृपक्ष के दौरान मंत्रों का जाप न केवल पितरों को संतोष प्रदान करता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को भी बढ़ाता है।
🔸 ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
(मृत्यु से मुक्ति और आत्मिक शांति के लिए)
🔸 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
(भगवान शिव से कृपा और मार्गदर्शन हेतु)
🔸 ॐ पितृगणाय विद्महे जगत् धारिणी धीमहि।
तन्नो पितृः प्रचोदयात्॥
(पितरों की कृपा और संतुष्टि के लिए)
निष्कर्ष: पितृपक्ष केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और आत्मिक संबंधों को निभाने का माध्यम है। इस पवित्र समय में संयम, श्रद्धा और नियमों का पालन करके हम न केवल अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त कर सकते हैं।
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- पितृ दोष के लक्षण और निवारण
- पिंडदान का महत्व और विधि
- श्राद्ध में क्या-क्या अर्पित करें?
- पितृपक्ष से जुड़ी रोचक पौराणिक कथाएं































































































































































































































































































































































































































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