नई दिल्ली -सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक चौंकाने वाली घटना हुई जब एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI B.R. Gavai) पर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि सुरक्षा कर्मियों की तत्परता से वकील को रोक लिया गया और किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ।
यह घटना सुबह लगभग 11:35 बजे हुई जब मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ छुट्टी के बाद पहली बार सुनवाई के लिए बैठी थी। अदालत में oral mentioning (मौखिक उल्लेख) की प्रक्रिया चल रही थी, तभी आरोपी वकील ने अपने स्पोर्ट्स शूज़ उतारकर उन्हें फेंकने की कोशिश की।
सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और आरोपी को पकड़ लिया, जिसके बाद अदालत में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया।
CJI गवई का संयमित व्यवहार
घटना के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने पूरा संयम बनाए रखा और कोर्ट की कार्यवाही सामान्य रूप से जारी रखी। उन्होंने उपस्थित वकीलों से कहा —
“ध्यान मत भटकाइए… अगर हम विचलित नहीं हैं, तो आप क्यों? कृपया अपनी कार्यवाही जारी रखें।”
उनके इस संतुलित और शांत व्यवहार की कानूनी समुदाय ने व्यापक सराहना की।
‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ के नारे
सुरक्षा कर्मियों द्वारा रोके जाने पर आरोपी वकील ने ज़ोर से नारे लगाए —
“सनातन का अपमान नहीं सहेंगे!”
बाद में उसकी पहचान दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत अधिवक्ता राकेश किशोर (Rakesh Kishore) के रूप में हुई। उसे सुरक्षा टीम ने तुरंत अदालत से बाहर ले जाकर हिरासत में लिया।
दिल्ली पुलिस की प्रतिक्रिया
दिल्ली पुलिस ने बताया कि इस घटना को लेकर कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई। पूछताछ और सत्यापन के बाद आरोपी को छोड़ दिया गया।
पुलिस अधिकारियों ने कहा कि घटना से कोई चोट या नुकसान नहीं हुआ और अदालत की कार्यवाही बाधित नहीं हुई।
सोशल मीडिया पर फैलाए गए भ्रम पर CJI की सफाई
राकेश किशोर के नारों को कई लोगों ने हाल ही में CJI गवई से जोड़े गए कथित बयानों से जोड़कर देखा, जिनमें कहा गया था कि उन्होंने “भगवान विष्णु” को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने बाद में स्पष्ट किया कि उन्होंने ऐसा कोई बयान कभी नहीं दिया था और सोशल मीडिया पर फैलाई गई बातें “पूरी तरह गलत और भ्रामक” हैं। उन्होंने कहा —
“मैं सभी धर्मों में विश्वास रखता हूँ और सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्षता का पालन करता हूँ।”
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की कड़ी कार्रवाई
घटना के तुरंत बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अधिवक्ता राकेश किशोर का लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
BCI अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया —
“यह आचरण एक अधिवक्ता के पेशेवर मर्यादा और अदालत के प्रति सम्मान के विरुद्ध है। इस तरह की हरकतें न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं और इन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और वकीलों की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह “न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला” है।
संस्था ने कहा —
“इस तरह का व्यवहार बार और बेंच के बीच आपसी सम्मान की परंपरा पर गहरा प्रहार है। अदालत की गरिमा बनाए रखना हर वकील का दायित्व है।”
कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और संगठनों ने भी इस घटना को “अभूतपूर्व और चिंताजनक” बताते हुए आरोपी के खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है।
घटना का व्यापक संदेश
यह घटना न केवल अदालत की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सोशल मीडिया पर फैलाई गई गलत सूचनाएँ और धार्मिक उन्माद किस प्रकार कानून के पेशेवरों तक को प्रभावित कर रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश गवई की संयमित प्रतिक्रिया ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि न्यायपालिका कठिन परिस्थितियों में भी गरिमा और शांति बनाए रखने में सक्षम है।



























































































































































































































































































































































































































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