बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जारी अंतिम मतदाता सूची को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने चुनाव आयोग (EC) से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि 3.66 लाख अतिरिक्त मतदाताओं के नाम किस आधार पर हटाए गए।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से जारी सूची में पारदर्शिता का अभाव है, और यह स्थिति चिंताजनक है।
मतदाता सूची से जुड़े चार बड़े सवाल
दीपांकर भट्टाचार्य ने अंतिम मतदाता सूची पर चार मुख्य आपत्तियाँ उठाईं –
- गलत तरीके से हटाए गए मतदाताओं की बहाली - अभी तक स्पष्ट नहीं है कि प्रारंभिक सूची (ड्राफ्ट रोल) से हटाए गए कितने लोगों के नाम अंतिम सूची में वापस जोड़े गए। 
 
- महिला मतदाताओं की संख्या में गिरावट - विशेष पुनरीक्षण (SIR) से पहले हर 1000 पुरुष मतदाताओं पर 914 महिलाएँ थीं, 
- अब यह घटकर 892 रह गई हैं। 
- यानी महिलाओं के नाम असमान रूप से बड़ी संख्या में हटाए गए हैं। 
 
- कुछ क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या घट गई - कई विधानसभा क्षेत्रों में अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या ड्राफ्ट सूची (1 अगस्त 2025) से भी कम है। 
 
- ‘गैर-नागरिक’ बताकर नाम हटाना - रिपोर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 6,000 नाम इसलिए हटाए गए क्योंकि उन्हें ‘गैर-भारतीय नागरिक’ बताया गया। 
- ड्राफ्ट सूची में ऐसा कोई आंकड़ा सामने नहीं आया था। 
- भट्टाचार्य ने सवाल किया कि चुनाव आयोग ने इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए कौन-सा आधार अपनाया। 
 
सिर्फ कानूनी होना किसी कानून को न्यायसंगत नहीं बनाता” – मुख्य न्यायाधीश गवई
मतदाता सूची के आँकड़े
- 24 जून 2025 (विशेष पुनरीक्षण से पहले): 7.89 करोड़ मतदाता 
- 1 अगस्त 2025 (ड्राफ्ट रोल): 7.24 करोड़ (65 लाख नाम हटे) 
- 30 सितंबर 2025 (अंतिम सूची): 7.42 करोड़ - 21.53 लाख नए नाम जोड़े गए 
- 3.66 लाख अतिरिक्त नाम हटाए गए 
 
👉 चुनाव आयोग ने जिन मतदाताओं के नाम गलती से हट गए हैं, उन्हें फॉर्म-6 भरकर फिर से नाम जुड़वाने का निर्देश दिया है। हालाँकि यह फॉर्म सामान्यतः पहली बार वोटर बनने वालों के लिए होता है।
भट्टाचार्य का कहना है कि आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि फॉर्म-6 के ज़रिए जोड़े गए लोगों में कितने पहली बार वोट डालने वाले हैं।
सुप्रीम कोर्ट जाने की चेतावनी
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा,
“यदि चुनाव आयोग इन सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं देता, तो विपक्ष को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा।”
✅ साफ है कि बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची में हुए बदलावों ने पारदर्शिता और निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। विपक्ष इसे गंभीर मुद्दा मानकर कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी में है।
























































































































































































































































































































































































































