प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के सदस्य संजीव सन्याल ने कहा है कि भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद अपने राष्ट्रीय हितों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसे-जैसे भारत वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह खुद बनानी होगी, क्योंकि “दुनिया की स्थापित शक्तियां किसी नए देश के लिए जगह नहीं छोड़तीं।”
संजीव सन्याल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित अरावली शिखर सम्मेलन में बोल रहे थे, जो विश्वविद्यालय की 70वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा, “भारत का उत्थान हमारे और दूसरों दोनों के लिए प्रभाव डालेगा। इतिहास बताता है कि किसी भी उभरती हुई शक्ति को दुनिया ने अपनी जगह खुद बनानी पड़ी है। कोई भी स्वेच्छा से जगह नहीं देता।”
🇮🇳 अमेरिका के दबाव पर भारत का रुख “संयमित लेकिन अडिग”
सन्याल ने बताया कि अमेरिका ने भारत पर 25% ‘प्रतिशोधात्मक टैरिफ’ (reciprocal tariffs) लगाए हैं और रूस से तेल आयात के लिए अतिरिक्त 25% ‘दंडात्मक शुल्क’ भी लगाया है। यानी भारत से आयात पर कुल 50% तक का शुल्क लगाया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “फिर भी भारत ने बहुत संयमित प्रतिक्रिया दी है। भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति के करीबी सलाहकार कभी-कभी भारत के प्रति नस्लीय या अपमानजनक टिप्पणी कर दें, हमने संतुलित व्यवहार दिखाया है।”
सन्याल ने स्पष्ट किया कि संयम का मतलब झुकना नहीं है — “हमने न तो मामला बढ़ाया है, न ही किसी दबाव में झुके हैं। लेकिन अगर कोई उचित मांग कर रहा है, तो हम अपने स्थान से पीछे नहीं हटते।”
🌍 “दूसरे देश झुके, भारत अडिग रहा”
उन्होंने कहा कि कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे यूरोपीय संघ (EU) और जापान, अमेरिका के दबाव में झुक गईं, लेकिन भारत ने अपनी स्थिति मजबूती से कायम रखी।
“अगर हम बार-बार झुकेंगे तो हमें हर मुद्दे पर झुकाया जाएगा। इसलिए हमें यह आदत डालनी होगी कि जो उचित है, उस पर दृढ़ रहना है,” उन्होंने कहा।
🇺🇸 “अमेरिका की नीतियां भारत के लिए चुनौतीपूर्ण”
‘द हिंदू ग्रुप’ की निदेशक मालिनी पार्थसारथी ने कहा कि “अमेरिकी संरक्षणवाद (Protectionism)” की आक्रामक नीति भारत के उभार में एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है।
उन्होंने कहा कि H-1B वीजा प्रतिबंध, भारतीय उत्पादों पर भारी शुल्क, और भारत-पाकिस्तान की तुलना जैसे कदम भारत-अमेरिका संबंधों में अस्थिरता पैदा करते हैं।
पार्थसारथी ने कहा, “जयशंकर-मोदी सिद्धांत (Jaishankar-Modi Doctrine) एक नए दृष्टिकोण का संकेत देता है, जो ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ और ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ (रणनीतिक स्वायत्तता) पर आधारित है। भारत को आत्मविश्वास, सॉफ्ट पावर और दक्षिण एशिया में मजबूत संबंधों के जरिए वैश्विक शक्ति बनने का लक्ष्य हासिल करना होगा।”
🗣️ भारत “सहयोगी विकल्प” के रूप में उभरे: जयशंकर
सम्मेलन के पहले दिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत हमेशा से अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर कायम रहा है और उसे क्षेत्रीय देशों के लिए “विश्वसनीय विकल्प” के रूप में देखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम में प्रो. अमिताभ माथुर (डीन, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज), पूर्व विदेश सचिव कंवल सिबल, और कुलपति संतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने भी विचार व्यक्त किए।



























































































































































































































































































































































































































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