नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI B.R. Gavai) पर जूता फेंकने की कोशिश के बाद देशभर में राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ तेज हो गईं। विपक्षी दलों ने इस घटना को “संविधान पर हमला” और “समाज में बढ़ती नफरत और असहिष्णुता” का प्रतीक बताया।
इस घटना में 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने कोर्ट रूम की कार्यवाही के दौरान मर्यादा तोड़ते हुए मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता फेंकने का प्रयास किया, जिसे सुरक्षा कर्मियों ने समय रहते रोक दिया।
कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस हमले की तीखी निंदा करते हुए कहा कि यह “बेहद शर्मनाक, बेतुका और घृणित कृत्य” है, जो समाज में फैल चुकी “नफरत, कट्टरता और धार्मिक अंधता” को दर्शाता है।
खड़गे ने कहा —
“यह सिर्फ न्यायपालिका की गरिमा और कानून के शासन पर हमला नहीं है, बल्कि यह उस व्यक्ति को डराने की कोशिश है जिसने मेहनत, ईमानदारी और संघर्ष से देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच बनाई है।”
उन्होंने आगे लिखा —
“यह घटना उस प्रवृत्ति को उजागर करती है जो पिछले एक दशक में हमारे समाज में नफरत और असहिष्णुता के रूप में जड़ें जमा चुकी है।”
सोनिया गांधी बोलीं — संविधान पर हमला
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी बयान जारी करते हुए कहा कि शब्दों में इस हमले की निंदा करना भी पर्याप्त नहीं होगा।
उन्होंने कहा —
“यह हमला सिर्फ मुख्य न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि हमारे संविधान पर भी है। न्यायमूर्ति गवई ने अत्यंत संयम दिखाया, लेकिन अब पूरे देश को उनके साथ एकजुटता के साथ खड़ा होना चाहिए।”
कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए
पूर्व कानून मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार के सदस्य द्वारा किया गया यह “असभ्य और अमर्यादित व्यवहार” न केवल अदालत की गरिमा का अपमान है, बल्कि न्यायिक संस्थानों पर सीधा प्रहार है।
उन्होंने कहा —
“प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और कानून मंत्री की चुप्पी बेहद चौंकाने वाली है। उन्हें इस अस्वीकार्य कृत्य की खुलकर निंदा करनी चाहिए थी।”
वाम दलों ने भी जताई चिंता और आलोचना
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के महासचिव डी. राजा ने इस घटना को “संविधान की आत्मा पर हमला” बताया। उन्होंने कहा —
“यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि पूरे न्यायपालिका को दक्षिणपंथी विचारधारा के कोड ऑफ कंडक्ट के अधीन करने की कोशिश है।”
डी. राजा ने यह भी कहा कि —
“हमलावर की बातों से स्पष्ट है कि उसके पीछे कौन-सी विचारधारा है। दाहिनी सोच के लोगों द्वारा फैलाए गए जातिवादी और सांप्रदायिक ज़हर ने अब उस स्तर को छू लिया है जहाँ देश के मुख्य न्यायाधीश — जो स्वयं दलित पृष्ठभूमि से हैं — भी निशाने पर हैं।”
CPI(M) ने RSS और BJP पर साधा निशाना
भाकपा (मार्क्सवादी) की पोलित ब्यूरो ने अपने बयान में कहा कि यह घटना उस “मनुवादी और सांप्रदायिक ज़हर” का नतीजा है जिसे भाजपा और संघ परिवार लगातार समाज में भर रहे हैं।
बयान में कहा गया —
“बीते समय में भाजपा के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों द्वारा जातिवादी और सांप्रदायिक बयान देने से ऐसे तत्वों को हिम्मत मिली है। यह घटना उसी असहिष्णुता का परिणाम है जो आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने समाज में गहराई तक फैला दी है।”
यह पहली बार नहीं है जब न्यायपालिका को राजनीतिक या वैचारिक हमलों का सामना करना पड़ा है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश पर इस तरह का प्रयास देश के संवैधानिक ताने-बाने और संस्थागत गरिमा पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।



























































































































































































































































































































































































































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