नई दिल्ली: वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी कानून की संवैधानिक वैधता पर ठोस आधार न हो, तब तक अदालत उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सीजेआई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई को फिलहाल तीन अहम मुद्दों तक सीमित कर दिया है।
कौन-कौन से हैं तीन मुख्य मुद्दे?
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वक्फ बाय यूजर की वैधता और इससे जुड़ी संपत्तियों का दर्जा
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वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का अधिकार
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सरकारी जमीन की पहचान को लेकर वक्फ संपत्तियों का वर्गीकरण
केंद्र और याचिकाकर्ताओं की दलीलें
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने पहले ही इन तीन बिंदुओं पर जवाब दाखिल कर दिया है और सुनवाई को इन्हीं तक सीमित रखा जाना चाहिए।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वक्फ अधिनियम को खंडों में नहीं, बल्कि समग्र रूप से देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल कुछ तकनीकी बिंदुओं का नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़ा है।
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केंद्र सरकार का रुख
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को पहले ही आश्वस्त किया था कि वह 5 मई तक ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं करेगा और न ही वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति करेगा। लेकिन केंद्र ने अदालत से यह भी आग्रह किया कि किसी भी प्रकार का अंतरिम आदेश पारित न किया जाए, जिससे अधिनियम की मूल भावना पर असर पड़े।
1,332 पेज का हलफनामा और कानूनी स्थिति
25 अप्रैल को अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने 1,332 पन्नों का विस्तृत हलफनामा दाखिल कर वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 का बचाव किया। इसमें कहा गया कि यह कानून संसद द्वारा पारित किया गया है और इसे संवैधानिक वैधता प्राप्त है। ऐसे में इस पर पूर्ण रोक लगाना न्यायिक अनुशासन के खिलाफ होगा।
आगे क्या?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इन तीन मुद्दों तक ही सुनवाई सीमित रखेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह कानून को खारिज करने या रोक लगाने के लिए तभी कदम उठाएगी जब स्पष्ट और मजबूत आधार प्रस्तुत किए जाएँगे।
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