गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में मिलावटी चायपत्ती की बिक्री का खुलासा हुआ है। नवंबर में नौसड़ के एक गोदाम में 180 क्विंटल चायपत्ती पकड़े जाने के बाद इस गोरखधंधे की जानकारी मिली। इसके बाद देवरिया और लखनऊ में भी इसी तरह की मिलावटी चायपत्ती पकड़ी गई।
कैसे होता है मिलावट का खेल?
धंधेबाज सस्ती चायपत्ती में रसायनयुक्त रंग मिलाकर उसका स्वाद और रंग बढ़ा देते हैं। इस वजह से यह चायपत्ती छोटे दुकानदारों के लिए सस्ती और आकर्षक बन जाती है। पश्चिम बंगाल और असम से आने वाली खुली चायपत्ती का कारोबार पुराना है। कई छोटी कंपनियां चाय बागानों से निकली डस्ट को क्रिस्टल रूप में तैयार कर 5 से 10 किलो की बोरियों में पैक करती हैं।
यह चाय थोक विक्रेताओं को 200 रुपये प्रति किलो के भाव मिलती है और वे इसे 220-240 रुपये प्रति किलो बेचते हैं। इस धंधे के तहत खराब चायपत्ती को रासायनिक रंग से मिलाकर सुखाया जाता है और फिर 250 ग्राम, 500 ग्राम, 1 किलो के पैकेट बनाकर बेचा जाता है। नौसड़ में पकड़ी गई खेप से मिले इनपुट के आधार पर जब देवरिया में छापा मारा गया, तो वहां पैकिंग मशीन भी मिली। जांच में पता चला कि गोरखपुर से लखनऊ, कानपुर और आसपास के जिलों में मिलावटी चायपत्ती की खेप जाती है।
बहराइच में पुरानी चायपत्ती को नया बनाने का खेल
नेपाल सीमा से सटे बहराइच में पहले से इस्तेमाल की जा चुकी चायपत्ती को नया बनाकर बेचा जाता है। सूत्रों के अनुसार, चाय की दुकानों से इस्तेमाल की गई चायपत्ती को एकत्र किया जाता है और इसमें रंग मिलाकर सुखाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान चायपत्ती के क्रिस्टल का आकार बढ़ जाता है, जिससे यह नई जैसी दिखने लगती है।
कैसे करें पहचान?
खाद्य सुरक्षा विभाग के अनुसार, मिलावटी चायपत्ती में छोटे-छोटे लाल रंग के कण होते हैं। इसे पहचानने के लिए:
- दो गिलास पानी लें – एक में ब्रांडेड चायपत्ती और दूसरे में मिलावटी चायपत्ती डालें।
- अच्छी चायपत्ती धीरे-धीरे नीचे जाएगी और पानी का रंग हल्का लाल होगा।
- जबकि रसायनयुक्त चायपत्ती घुलते ही नीचे बैठ जाएगी और पानी का रंग गहरे लाल हो जाएगा।
चायपत्ती में मिलावट के इस खेल से आम लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है। प्रशासन को इस तरह के मामलों पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है।
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